Monday 17 August 2015

‘ऊपरवाला’ सिर्फ ‘ईश्‍वर’ का ही पर्यायवाची नहीं

 -सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी
अगर आप इस गलतफहमी में जी रहे हैं कि ”ऊपरवाला” सिर्फ ”ईश्‍वर” का ही पर्यायवाची है, तो आप अपनी इस गलतफहमी को दूर कर लें। ”ऊपरवाले” के अब और भी मतलब है, और वही मतलब सार्थक हैं। वही अपनी महत्‍ता को साबित करते हैं।
उदाहरण के लिए भगवान कृष्‍ण का धाम कहलाने वाले हमारे मथुरा जिले में पिछले काफी समय से बिजली कुछ उसी तरह कभी-कभी चमकती है जैसे आकाशीय बिजली चमकती है। ये बात अलग है कि बिजली पूरी आये या ना आये बिल पूरा आता है।
बिजली की इस जालिम अदा के बारे में आप किसी अधिकारी अथवा कर्मचारी से पूछ कर देख लीजिए, उसका एक ही टका सा जवाब होता है कि बिजली तो ”ऊपर” से ही नहीं है।
”ऊपरवाला” के शॉर्टकट ”ऊपर” को आप नहीं समझते तो यह आपकी बुद्धि के दिवालिएपन की निशानी है, इसमें बिजली विभाग के कर्मचारियों का कोई दोष नहीं है।
इस नए जमाने का ”ऊपरवाला” यूं तो लखनऊ में बैठता है किंतु वह यत्र-तत्र-सर्वत्र व्‍याप्‍त है। वह आकाश में भले ही न रहता हो किंतु आकाश मार्ग से कहीं भी पहुंच सकता है।
”ऊपरवाला” कहलाने के अब तक हासिल ‘ईश्‍वर’ के पेटेंट पर अब उसका एकाधिकार न सही, लेकिन सर्वाधिकार तो है ही।
यही कारण है कि जब-जब बिजली जाती है, तमाम तुच्‍छ प्राणी इस ऊपरवाले की ओर निहारने लगते हैं।
ऊपरवाले का तमगा प्राप्‍त कृष्‍ण अगर यदुवंशी थे तो लखनऊ में बैठा यह ऊपरवाला भी खुद को यदुवंशी कहता है। डीएनए मिलता है या नहीं, इसका जवाब तो मोदी जी और नीतीश कुमार ही दे सकते हैं क्‍योंकि दोनों को डीएनए की खोज में महारथ हासिल है।
बहरहाल, यदुवंशी कृष्‍ण की नगरी मथुरा के वाशिंदों को नए जमाने का ऊपरवाला तबियत से बिजली के झटके दे रहा है। उनकी नींद हराम कर रखी है। रोज रात को नौ साढ़े नौ बजे ऊपर वाला मथुरा की बत्‍ती गुल करता है और फिर मध्‍यरात्रि में एक बजे मेहरबान होता है।
पूछने पर कहता है कि तुम्‍हारा यदुवंशी रात 12 बजे पैदा हुआ था। उसका हैप्‍पी बर्थडे आने वाला है। मैं तो तुम्‍हें जागने की प्रेक्‍टिस करा रहा हूं। अब दिन ही कितने बचे हैं।
चैन से सोना है तो जागने की रिहर्सल जरूरी है। वो ऊपरवाला तुम्‍हारा ध्‍यान रखता है तो मैं तुम्‍हें कैसे भूल सकता हूं।
नए जमाने के ऊपर वाले का संदेश भी साफ है। सैफई से तीन पीढ़ियां प्रकट होने के बावजूद मथुरावासियों ने आज तक उन्‍हें दिया क्‍या। हर चुनाव में झुनझुना पकड़ाया और उम्‍मीद करते हैं कि चौबीसों घंटे बिजली मिल जायेगी।
यह बात अलग है कि नए जमाने के ऊपरवाले का नाम बदनाम न हो इसलिए उसने नीचे वाले अफसरों को समझा रखा है कि मैं सभी में व्‍याप्‍त हूं लिहाजा नाम बदल-बदल कर मेरा उपयोग किया करो।
मसलन कभी कहो कि बिजली ऊपर से नहीं है तो कभी कहो कि अनपरा से नहीं है। कभी बताओ कि मुरादाबाद से समस्‍या है तो कभी बताओ कि आगरा की पीली पोखर बिजली पी गई है।
इतने से भी मन भर जाए तो कान्‍हा के गोकुल और वृंदावन का नाम ले दो, बता दो कि समस्‍या वहां हैं। समस्‍या से निजात पानी है तो पापी मन, प्रभु को पहचान।
पहचान कि 2017 की विकट समस्‍या है। मथुरा की राशि में मोदी, मुलायम और मायावती विद्यमान होंगे। लग्‍न में मोदी मित्रभाव से बैठा है तो आठवें घर में मुलायम शत्रुभाव से। मायावती की न मोदी से बनती है और न मुलायम से इसलिए वह मथुरा के प्रति सदा तटस्‍थभाव से बैठी रहती हैं। दिनों के फेर उसकी माला के मनके में होते ही नहीं। उसकी माला में तो हर मनका समय और माया के हेर-फेर से आगे बढ़ता है। वर्ना सुमरनी पर आकर अटक जाता है।
खैर…बिजली का करंट बिजली आने से कहीं अधिक न आने पर झटका देता है, इसका इल्‍म ब्रजवासियों को भलीभांति हो चुका होगा। सूखे शंख कैसे बजते हैं, इसका पता तब लगता है जब बिना बिजली के बिजली का भारी-भरकम बिल सामने आता है।
और हां, क्‍या मजाल किसी की कि कोई बिल देने में आनाकानी कर जाए। ऊपरवाले की कृपा से नीचे वालों के हाथ बहुत लंबे हैं। बिजली आये न आये, बिल आयेगा और जमा भी करना होगा।
नहीं किया तो डंडा बजाने से लेकर डंडाडोली करके उठा ले जाने तक का बंदोबस्‍त ऊपरवाले ने कर रखा है। उसके कारिंदे सब जानते हैं कि सीधी उंगली से घी न निकले तो उंगली टेढ़ी कर लेनी चाहिए।
छप्‍पर फाड़कर गर्मी दे रहा है वो ऊपरवाला…तो दिल खोलकर बिल भेज रहा है ये ऊपरवाला। कंपटीशन जारी है बिना बिजली के।
चार घंटे की रात्रिकालीन एकमुश्‍त बिजली कटौती सिर्फ इसलिए है जिससे जान सको कि करनी का फल हर हाल में भोगना पड़ता है। एक विधायक नहीं… सांसद नहीं… यहां तक कि नगरपालिका भी नहीं…तो बिजली भी नहीं। बिन बिजली सब सून कहीं नहीं लिखा। बिन पानी सब सून जरूर लिखा है।
पानी की कोई शिकायत नहीं है, सबकी आंखों में पानी है। बिजली ने रुला जो रखा है। सरकार की बात मत करना। सरकार की आंखों का पानी सूख गया है। वैसे भी उसका काम रोना नहीं, रुलाना है।
और हां…2017 तक रुलाने का अधिकार तो हम-आप सभी ने दिया है उसे। फिर रोइए…रोते रहिए..और रात एक बजे तक का इंतजाम करके रखिए।
कुछ न मिले तो छत पर खड़े होकर आवाज लगाइए- जागते रहो…जागते रहो…क्‍योंकि सरकार और उसके नुमाइंदे ऐसी में सो रहे हैं।
नए जमाने के ऊपर वाले गहरी निद्रा में लीन हैं। पुराने जमाने का ऊपर वाला बांसुरी बजाने में तल्‍लीन हैं।
तुम किस खेत की मूली हो, खुद तय कर लो। मुझे तो पता नहीं।
खुदा जाने या खुद जानो।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

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